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कलार समाज

प्राचीन काल मे वर्ण और वंश व्यवस्था थी। प्राचीन काल मे जाति प्रथा नही थी किसी के नाम के आगे पीछे कुछ नही होता था । जैसे राम, लक्ष्मण, कृष्णा, बलराम, अर्जुन, भीम, नकुल, सहदेव। राजाओं के नाम से वंश की पहचान हुआ करती थी । चंद्रवंश की ही हम सभी टहनियां हैं ।चंद्रवंश में “यदु” राजा हुए जिनसे यदुवंश चला। यदुवंश में ही हैहय राजा का जन्म हुआ जिनसे हैहय वंश चला। हैहय वंश में ही कृतवीर्य का जन्म हुआ और कर्तवीर्य से सहस्त्रार्जुन जी का जन्म हुआ ।

सहस्त्रार्जुन जी शिव के उपासक थे और उन्हें शिव का वरदान भी मिला था। सहस्त्रार्जुन जी ने पूरे विश्व पर शासन किया था रावण जैसे पराक्रमी को भी उन्होंने बहुत आसानी से युद्ध मे पराजित कर अपने कैद में रखा था। सहस्त्रार्जुन जी के युग से ही कलचुरी वंश की उत्पत्ति हुई।

कलार समाज का इतिहास

काल को चूर चूर करने वाले प्रतापी राजा के वंश कलचुरी कहलाये। सहस्त्रार्जुन जी के छः पीढ़ी बाद बलभद्र यानी बलराम का जन्म हुआ जो कि कृष्णा भगवान के अग्रज थे । आज भी देश के कई जगह जगनाथ मंदिर जहां भी है । उसमें बलभद्र सुभद्रा और कृष्णा की प्रतिमाये स्थापित हैं।

कलचुरी हमारा वंश है और वैष्य या क्षत्रिय वर्ण है। वर्ण की बात करें तो हम कल क्षत्रिय थे पर आज कल के क्षत्रिय कर्म के आधार पर वैश्य हो गए।

हमारी मूल जाति गवर्मेंट रिकॉर्ड में कलवार, कलाल, कलार दर्ज है जो हमारी मुलजाति है जो अलग अलग क्षेत्रो में अलग अलग नाम से कहीं कलवार कहीं कलाल कहीं कलार नाम से प्रचलित है लेकिन तीनों ही एक दूसरे के अपभ्रंश हैं।